भ्रष्टाचार तू कैसे जाएगा?

कल शाम मेरे सामने से भ्रष्टाचार जा रहा था,

उसे देखते ही मेरे मन में क्रोध आया,

मैंने उसे ललकारते हुए बुलाया। 

मैंने कहा अरे ओ निर्लज्ज भ्रष्टाचार,

तू कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, 

मैं तुझे उखाड़ फेकूँगा, 

मैं वो नहीं जो तेरे चूल्हे पर अपनी सफलता की रोटी सेकूँगा।  

उसने कुटिलता भरी मुस्कान से मुझे घूरा और बोला,

तू मुझे कैसे मिटाएगा, 

क्या मुझे बताएगा?

मैंने कहा शिक्षा से, 

ईमानदार शिक्षक से

फिर तो वह जोर-जोर से हंसने लगा,

और मुझ पर तरसने लगा। 

और कहा 

शिक्षा, कौन सी शिक्षा, 

वही जो उन बड़े-बड़े भवनों में दी जाती है,

जिसमें लगे सीमेंट, सरिया, बाजरी और मजदूरी,

मेरे ही मौजूदगी में आती है। 

या वे टूल्स और उपकरण जिससे बच्चे सीखते हैं,

या फिर वो फ्री में दी जाने वाली किताबें 

जिसकी छपाई से ले कर ढुलाई तक में मैं विद्यमान हूँ,

मैं भ्रष्टाचार हूँ, मैं बड़ा ही महान हूँ। 

वह फिर से हँसते हुए मेरे सपनों पर कुठाराघात किया,

जब उसने शिक्षक नियुक्ति की बात किया। 

उसने कहा  तिवारी सुन,

मेरे ही कारण न जाने कितने शिक्षकों की नियुक्तियां और तबादले होते हैं,

ईमानदार शिक्षक अपने करनी पर रोते हैं।  

बहुतों की तो डिग्रियां तक मैंने ही बनवाई हैं,

तब जा कर कहीं वो नौकरी पाई है। 

उसने फिर मुझसे पूछा, 

कहीं तू प्राइवेट स्कूलों की शिक्षा की बात तो नहीं कर रहा है,

तो सुन, वहाँ की शिक्षा मे मैं पूरी तरह समाया हूँ,

छात्रों की पुस्तक और ड्रेस में कमीशन के रूप में मैं आया हूँ।

प्रत्येक महीन होने वाली ऐक्टिविटी में कितने रुपये वहाँ लिए जाते हैं,

अपने वार्षिकोत्सव में वे ड्रेस के दाम तक बच्चों से मंगाते हैं। 

क्या तुझे मैं वहाँ नहीं दिखता, 

या तू मुझे देखना नहीं चाहता।

चला है भ्रष्टाचार को शिक्षा से मिटाने,

और मुझे लगा अपने रास्ते से हटाने।

मैं उसकी बातों से थोड़ा डरा हुआ था, 

पर निडर बनकर उसके सामने खड़ा हुआ था।

उसने कहा हट जा मेरे सामने से, 

पर मैं नहीं हटा,

उसने मेरा कॉलर पकड़ कर मुझे दे पटका। 

मेरी एक-एक हड्डी चरमरा गई, 

मेरे दिल से आह निकल गई।            

मैंने चेताते हुए उसे कहा...

भ्रष्टाचार तू कितना ही शक्तिशाली क्यूँ न हो,

जब तेरे पाप की गगरी भर जाएगी।  

तुझे एक दिन यही शिक्षा मिटाएगी।

तुझे एक दिन यही शिक्षा ही मिटाएगी।।

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