आओ आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाएं
एक गाँव में अब्दुल सिंह नाम का एक व्यक्ति रहता था. उसे कई बार ऐसा लगता था कि जो आज़ादी उसे मिलनी चाहिए थी जीतनी मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली है. बस यही सोच कर वह बहुत दुखी रहने लगा. एक दिन अब्दुल सिंह अपने गुरुजी से यह जानने के लिए गया कि वह आजाद है पर उसे आज़ादी महसूस नहीं होती, तो क्या करे कि जिससे उसे आज़ादी महसूस हो.
इस पर गुरूजी उसे बहुत प्रकार से समझाया पर उसे सब बेकार कि बात लग रही थी, क्योंकि उसे बस यह पता था कि आज़ादी का मतलब होता है कि एक व्यक्ति जब जहाँ चाहे जा सके, जिसको जो कहना चाहे कह सके, जो खाना चाहे खा सके, आज़ादी ऐसी होती है. किन्तु वह ऐसा नहीं कर पा रहा था. इसलिए बहुत परेशान था.
अब्दुल सिंह कि यह बातें सुनकर गुरूजी ने उसे आज़ादी का व्याहारिक ज्ञान देने कि सोची. गुरूजी अपनी छड़ी अब्दुल को देते हुए कहा तुम्हें आज़ादी महसूस करनी है न, तो मेरी यह छड़ी लो और इसे अपने सिर के ऊपर चारों ओर घुमाते हुए सीधे आगे बढ़ो, किन्तु यह ध्यान रहे कि छड़ी घुमाना बंद नहीं होना चाहिए. उसने ऐसा ही किया. छड़ी को अपने सिर के चारों ओर घुमाते हुए आगे बढ़ने लगा. जैसे थोडा आगे बढ़ा कुछ लोग सामने से जा रहे थे और उन्हें छड़ी लगते-लगते बची, इस पर वे लोग अब्दुल सिंह को छड़ी न घुमाने के लिए कहा. लेकिन गुरुजी ने छड़ी लगतार घुमाने को कहा था. इसलिए अब्दुल छड़ी घुमाना बंद नहीं किया. थोड़ा और आगे बढ़ा तो सामने एक पहलवान जा रहा रहा था उसे वह छड़ी लग गयी. जैसे ही उस पहलवान को छड़ी लगी वह अब्दुल को उठा कर पटक दिया और बहुत मारा.
बहुत मार खाने के बाद अब्दुल जैसे-तैसे अपने गुरूजी के पास आया और सारी घटना विस्तार से बताई. तब गुरुजी ने कहा कि जो उसकी छड़ी थी वह एक दायरा बना रही थी, यह दायरा उसकी आज़ादी का ही तो था. किन्तु जब सामने अन्य लोग जा रहे थे भले ही वह सभी छड़ी नहीं घुमा रहे थे पर उनकी आज़ादी का भी एक दायरा था. जब तुम्हारी आज़ादी दूसरे कि आज़ादी में प्रवेश करी तभी तुम्हारी आज़ादी उन्होंने छीन ली.
ऐसे ही आज हमारे बीच में कई लोग है जिन्हें लगता है कि उनकी आज़ादी छीनी जा रही है. जो वे कहना चाहते हैं, उसे वे नहीं कह पाते, जो वह खाना-पीना चाहते हैं उसे वे नहीं खा-पी नहीं पाते और न जाने क्या-क्या. लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर धर्म, जाति, समुदाय आदि में नफरत फ़ैलाने का कार्य कर रहे हैं.
पिछले दिनों एक मामले कि सुनवाई के दौरान इलाहबाद हाईकार्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, राम के बिना भारत अधूरा है. ईश्वर को माने या न माने लेकिन आस्था को ठेस पहुँचाने का अधिकार किसी को नहीं है. माननीय हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति कि आज़ादी असीमित नहीं है. राज्य कि सुरक्षा को खतरे में डालने वाली अफवाह फैलाना, अश्लीलता फैलाना अभिव्यक्ति कि आज़ादी नहीं अपराध है.
एक जागरूक नागरिक होने के नाते हम सब का कर्त्तव्य है कि जब कभी हमारे पास कोई ऐसा सन्देश आये जो समाज में घृणा और द्वेष फ़ैलाने वाला हो, तो उसे किसी को भी फारवर्ड न करें और जिसने भी वह सन्देश भेजा है उसे दुबारा ऐसा सन्देश न भेजने के लिए भी आग्रह करें. आखिर हम सब का कर्तव्य है कि अपने देश को आगे ले जाना है जिससे हमारी आनेवाली पीढ़ियाँ “वसुधैव कुटुम्बकम” कि मिसाल बने.
जय हिन्द!