इतिहास की वो घटना, जब गांधी जी ने मानी थी सुभाष चंद्र बोस से हार.
इतिहास की वो घटना, जब गांधी जी ने मानी थी सुभाष चंद्र बोस से हार.
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों में से एक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपने क्रांतिकारी तेवरों से ब्रिटिश राज को भी हिलाकर रख दिया था.
लोग उन्हें ‘नेताजी’ कहकर बुलाया करते थे और बुलाएं भी क्यों न वही तो वास्तव में स्वराज्य के असली पुरोधाओं में अग्रणी थे. सुभाष चंद्र बोस की पहली मुलाकात गांधी जी से 20 जुलाई 1921 को हुई थी. गांधी जी के आग्रह पर वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए काम करने लगे.
आज़ादी की लड़ाई में वे गरमदल के नेता थे, जब गाँधी जी को यह पता चला की नेताजी हिंसा के मार्ग पर चल कर आज़ादी प्राप्त करना चाहते हैं तो गाँधीजी ने कहा सुभाष, यह तुम्हारे दिमाग का पागलपन है, तो हमारे नेताजी ने बड़ी ही सहजता से कहा:
इन्हीं पागल दिमागों में खुशियों के लच्छे हैं।
हमें पागल ही रहने तो की हम पागल ही अच्छे हैं।।
उन्होंने देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. एक वक्त ऐसा भी था जब वो देश में अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में भी उतरे थे. आइए जानें ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना.
साल 1937 का वो दौर था जब कांग्रेस ने सरकार बनाई और जमीन पर उतर कर खूब काम करने लगे. उस वक्त वाम राजनीति भी अपने शिखर पर थी और नेताजी वाम संगठनों का पक्ष वो भी लेते थे. तब यह कहा जा रहा था कि यही सही समय है जब आंदोलन को अमली जामा पहनाकर अंग्रेज सरकार की नींव हिला दी जाए और पूर्ण स्वराज हासिल किया जाए.
साल 1938 में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए. फिर साल 1939 में वो फिर इस पद के लिए उम्मीदवारी की रेस में आए. उन्होंने कहा था कि मैं नई विचारधारा लाऊंगा. इस पर सरदार पटेल, कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद का तर्क था कि ये प्रेसिडेंट का काम नहीं है.
फिर इस चुनाव में गांधीजी के कहने पर से इन्हीं सब नेताओं ने पट्टाभि सीतारमैया को उम्मीदवार बनाया, लेकिन हुआ ये कि चुनाव बोस जीत गए. चूंकि सीतारमैया गांधी जी की तरफ से खड़े किए गए उम्मीदवार थे, इसलिए गांधीजी ने तब ये कहा, ये मेरी हार है.
फिर वो दौर भी आया जब ब्रिटिश शासन के सामने द्वितीय विश्व-युद्ध की चुनौती आ गई. अब ऐसे में सुभाष बोस की स्ट्रैटजी थी कि ये एकदम सही समय है कि आंदोलन का दबाव होगा तो हमें आजादी आसानी से मिल सकती है.
लेकिन तब उनके बाकी लोग इससे सहमत नहीं हुए. फिर आपसी असहमति धीरे-धीरे इतनी बढ़ गई कि सुभाष बोस ने कांग्रेस छोड़कर ‘फॉरवर्ड ब्लाक’ के नाम से नई पार्टी ली.
उनकी तरह उनकी पार्टी की भी लोकप्रियता खूब ज्यादा थी. भारत की आजादी के साथ-साथ उनका जुड़ाव सामाजिक कार्यों में भी बना रहा. बंगाल की भयंकर बाढ़ में घिरे लोगों को उन्होंने भोजन, वस्त्र और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का साहसपूर्ण काम किया था.
समाज सेवा का काम नियमित रूप से चलता रहे इसके लिए उन्होंने 'युवक-दल' की स्थापना की. भगत सिंह को फांसी की सजा से रिहा कराने के लिए वे जेल से प्रयास कर रहे थे. उनकी रिहाई के लिए उन्होंने गांधी जी से बात की और कहा कि रिहाई के मुद्दे पर किया गया समझौता वे अंग्रेजों से तोड़ दें. इस समझौते के तहत जेल से भारतीय कैदियों के लिए रिहाई मांगी गई थी.
गांधी जी ब्रिटिश सरकार को दिया गया वचन तोड़ने के लिए राजी नहीं हुए, जिसके बाद भगत सिंह को फांसी दे दी गई. इस घटना के बाद वे गांधी और कांग्रेस के काम करने के तरीके से बहुत नाराज हो गए थे.